निर्वेगसागर जी पूजन
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*पूजन*
पाठशाला प्रणेता परमपूज्य मुनि श्री 108 प्रशांत सागरजी महाराजजी(छंद-ज्ञानोदय)
स्थापना
(तर्ज-ओ मेरे गुरुवर,एक बात बताओ…..)
प्रशांत मुद्रा,प्रशांत चर्या,प्रशांत भावो के धारी ।
प्रशांतसागर बनने गुरु ने,प्रशांत दीक्षा है धारी ।
हे प्रशांतसागर मुनिवर अब,मन-मंदिर में आ जाओ।
बन जाये हम आपके जैसे,ऐसी राह दिखा जाओ ।
*जल*
नीर-नीर में भेद सुना है, ज्ञान-नीर में भेद कहा।
गुरु-चरणों में नीर चढाये,मिट जाए अज्ञान महा।
हे प्रशांतसागर मुनिवर अब,भव-बन्धन को नाश करो।
चन्दन से वंदन करते हम,मम मन में गुरु वास करो।
*चन्दन*
चंद दिनों की काया को ,चंदन शीतलता देता है।
भव-आताप मिटाने को वंदन,वंदन शीतलता देता है।
हे प्रशांतसागर मुनिवर अब,भव-बन्धन को नाश करो।
चन्दन से वंदन करते हम,मम मन मे गुरु वास करो।
*अक्षत*
श्वेत चवँर से आभूषित,अरिहंत अवस्था को पाने ।
अक्ष-जीत,अक्षय बन जाने, अक्षत लेकर है आये।
हे प्रशांतसागर मुनिवर अब,नश्वर सुख को नाश करो।
अक्षय-सुख मिल जाये मुझको,मम-मन मे गुरु वास करो।
*पुष्प*
विषयो की आशा ने ही,विषमय संसार बड़ाया है।
भोगो की अभिलाषा ने ही,आतमस्वरूप ठुकराया है।
हे प्रशांतसागर मुनिवर अब,अब्रह्म-पद का नाश करो।
ब्रह्मचर्य-पद पाने हेतू,मम-मन में गुरु वास करो।
*नैवेद्य*
मनभर खाया व्यंजन को,फिर भी ये मन न भर पाया।
रसना के इन स्वादों का,भृमजाल तोड़ने में आया।
हे प्रशांतसागर मुनिवर अब,क्षुधा-भाव का नाश करो।
क्षुधा-तृषा को तजने हेतू,मम-मन में गुरु वास करो।
*दीप*
खुले नयन से ज्योत दिखे पर,बन्द-नयन न दिखती हैं।
अध्यातम-ज्योति से ही,आतमस्वरूप की सुरभि है।
हे प्रशांतसागर मुनिवर ,मोहान्धकार का नाश करो।
केवलज्ञान की ज्योति जलाने,मम मन में गुरु वास करो।
*धूप*
धर्मध्यान की वायु से,विषयों की धूल उड़ाना है।
शुक्लध्यान की अग्नि से,कर्मों की धूप जलाना है।
हे प्रशांतसागर मुनिवर ,मम अष्टकर्म को नाश करो।
सिद्धालय की भूमि पाने,मम मन मे गुरु वास करो।
*फल*
कदली,आम्र,बादाम-क्षुआरा,श्रीफल आदिक हूँ लाया।
मोक्षमहल की आशा लेकर,सांसारिक फल हूँ लाया।
हे प्रशांतसागर मुनिवर अब,फल की इच्छा शमन करो।
महामोक्षफल प्राप्ति हेतू,मम-मन मे गुरु वास करो।
*अर्घ्य*
अर्घ्य-समर्पण,जीवन-अर्पण,
गुरुचरणों में हूँ करता।
गुरु ही ज्ञान,गुरु ही भगवन,
गुरु ही जीवन के कर्ता।
हे प्रशांतसागर मुनिवर अब,
मोक्षमार्ग साकार करो।
अनर्घ्य-पद की प्राप्ति हेतू,
मम-मन मे गुरु वास करो।
️ *स्थापना*
️
संत शिरोमणि विद्यागुरु के शिष्य सुशोभित आप ।
रत्नत्रय के पालनहारे,पाठ शाला प्रणेता आप।।
शरद पूर्णिमा के दिन संयमधारे,
विद्यागुरु से आप।
शत-शत नमन करुँ मै,
गुरु-शिष्यों को आज ।।
ॐ ह: श्री प.पू. १०८ निर्वेगसागर मुनिंद्राय अत्र अवतर अवतर संवोषट आह्वाननम्।
ॐ ह: श्री प. पू.१०८ निर्वेगसागर मुनिंद्राय अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठ: ठ: स्थापनम् ।
ॐ ह: श्री प.पू.१०८ निर्वेगसागर मुनिंद्राय अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट् सन्निधिकरणम्।
*जयमाला*
सृष्टि की हर्षित गोदी में,जब सूर्य उदय की बेला थी।
आकाश के अधरों पर जिस दिन,
इंद्रधनुष की शोभा थी।
गोटेगांव की धरती का,उस दिन सौभाग्य निराला था।
जन्मे थे उसदिन स्वयम सन्त,सृष्टि का भाग्य निराला था।
पुत्रजन्म के उत्सव से,पिता देवचन्द्रजी हर्षित थे।
मात सुशीला बालरूप-तव,देख रही मन भर-भर के।
धैर्यशक्ति तुममे बलशाली, राजाओं के ईश समान।
अतः पिता ने नाम दिया ,राजेश तुम्हे अतिशय गुणवान।
ऋतुओं के परिवर्तन जैसा क्षणभंगुर यह जीवन है।
आतमसुख को पाने हेतू, मोक्षमार्ग ही पावन है।
निकल पड़े फिर,गुरु को पाने,जगमाया को तृणवत छोड़।
विद्यागुरुवर को पाकर फिर,व्रत पाया ब्रह्मचर्य अघोर।
नवासी में ब्रम्हचर्य लिया,फिर क्रम-क्रम से व्रत है धारे।
क्षुल्लक-ऐलक पद भी धारे,जो साधक को श्रृंगारे।
नेमावर फिर हुई प्रफ़ुल्लित,शरद-पूर्णिमा का अवसर,
मुनिदीक्षा की हुई घोषणा,खुशियां छाई थी घर-घर।
सन्तशिरोमणि विद्या गुरु ने,स्वयम आपको दीक्षा दी,
सन्तानवें के सन में गुरु ने,शिष्यगणों की रचना की।
पँचपाप को त्याग मुनिवर,पँचमहाव्रत को धारा।
पँचमगति को पाने हेतू,परमेष्ठि पद है पाया।
गुरु-आशीष से नगर-नगर,पाठशालाओं को हैं खुलवाया।
प्रशांत संग निर्वेग गुरु का,रूप सभी के मन भाया।
श्वास-श्वास अंतिम श्वासें भी,काम आपके ही आये,
यही चाह और यही भावना,गुरु भावो को हम भाये।
है अनन्त उपकार आपके चुका कभी न पाएंगे,
सदियों की हर एक क्षणों में गीत आपके गाएंगे।
️ *जयमाला*
️
भारतवर्ष की पवित्र धरती, प्रांत मध्यप्रदेश में ।
१० दिसंबर १९७२ को,आनंद छाया छिंदवाड़ा में ।!
पुत्र दिलीपजीं का जन्म हुआ,एक अपूर्व आनंद हुआ।
कमला माँ जी से रत्न मिला,सुसंस्कारो से सजा हुआ।।
दिलीप जब बड़ा हुआ,जीवन उनका धन्य हुआ।
सन् १९९२ को गृह त्यागकर,विद्यागुरु के शरण आया।।
विद्यागुरु से ज्ञान पाकर,जीवन अपना सफल बनाया ।
सन् १९९५ को लेकर क्षुल्लक दीक्षा,मोक्षपथ पर आरोहण किया।
१६ अक्तूंबर १९९७ को ,दृढ़ सदाचरण से मुनिपद को पाया।।
आत्मा का उद्धार किया,निर्वेगसागर नाम है पाया ।
ज्ञानकिरण के विद्या द्वारा,चमक रही है निर्वेगकाया।।
मानवता को जागृत करते,दूर कराती मोह अंध माया।!
भारतवर्ष में जहां जहां भी गुरु ने किया है विहार,
वहां के अबाल-वृद्धो के जीवन में आया है बहार ।।
निर्वेगगुरु के चरणों में लगाकर अपना मन,
धर्मोपदेश सुनकर बदल डालूँ अपना जीवन।
मुनिश्री के चरणों में बारंबार शीश झुकाती हूँ ।
उनके आदर्शों का करुँ पालन यही भावना भाति हूँ ।
ॐ ह: श्री प पू १०८ निर्वेगसागर मुनिंद्राय जयमाला महार्घ्यम् निर्वपा मिति ..
शांतिधारा विद्यासंघ निर्वेगगुरु से, विश्वशांति छाय।
प्रासुक जल की धार दे,हम पूजत गुरुराय।
पुष्पांजली
कल्पतरू के पुष्य सम,पुष्पांजली पद लाय।
भव दु:खों को मेट दो,निर्वेगसागर गुरुराय ।।
️ *द्रव्यार्पण*
️
जन्म मरण रोगों को, युग युग से सहता आया ।
तव कृपा औषधि पाने को,प्रासुक जल अर्पण करने आया ।
श्री निर्वेगसागर गुरुवर ,तव पूजन से मन हर्षाया।
आप सम सुख पाने मैं,चरण शरण हूँ आया ।।
ॐ ह: श्री प.पू.१०८ निर्वेगसागर मुनिंद्राय मम जन्म जरा मृत्यु विनाशनाय जलम् निर्वपा मिति….
संयम के पावन सुंगध से,सुशोभित है जिनकी चर्या।
चंदन सम शीतलता पाने,अब गुरु चरण शरम में आया ।।
श्री निर्वेगसागर गुरुवर,तव पूजन से मन हर्षाया ।
आप सम सुख पाने,तव चरण शरण में हूँ आया ।।
ॐ ह: श्री प.पू.१०८ निर्वेगसागर मुनिंद्राय मम संसारताप विनाशनाय चंदनम् निर्वपा मिति….
नश्वर इन्द्रिय सुख में रमकर,आत्मसुख को भूल गया ।
अक्षयसुख पाने अब गुरुचरणों में अक्षत चढ़ाने हूँ आया ।।
श्री निर्वेगसागर गुरुवर,तव पूजन से मन हर्षाया ।
आप सम सुख पाने मैं,तव चरण शरण हूँ आया ।।
ॐ ह: श्री प पू १०८निर्वेगसागर मुनिंद्राय मम अखंड अक्षय पद प्राप्तेय अक्षतम् निर्वपा मति …
कामदेव के मदनबाण को,गुरुकृपा से रोक सकूँ ।
संयम धारण करने हेतू,सुमन से सुमन अर्पण करुँ ।।
श्री निर्वेगसागर गुरुवर,तव पूजन से मन हर्षाया ।
आप सम सुख पाने मै ,तव चरण शरण हूँ आया ।।
ॐ ह: श्री प पू १०८निर्वेगसागर मुनिंद्राय मम कामबाण विध्वंसनाय पुष्पम् निर्वपा मिति…
इन तृषा-क्षुधा ने अनादि से असाता बन तडपाया ,अब तृषा-क्षुधा व्याधि मिटाने,
गुरुवैद्य तव शरण आया ।
श्री निर्वेगसागर गुरुवर,तव पूजन से मन हर्षाया ।
आप सम सुख पाने मै,तव चरण शरण हूँ आया ।।
ॐ ह: श्री प पू १०८ निर्वेगसागर मुनिंद्राय मम क्षुधारोग निवारणाय नैवेद्यं निर्वपा मिति….
मोह महातम अज्ञान तिमिर से संसार में भटक रहा हूँ ।
तव सम रत्नत्रय प्रकाश पाने,श्रद्धा दीपक लाया हूँ ।
श्री निर्वेगसागर गुरुवर,तव पूजन से मन हर्षाया ।
आप सम सुख पाने मै,तव चरण शरण हूँ आया ।।
ॐ ह: श्री प पू १०८ निर्वेगसागर मुनिंद्राय मम मोहांधकार विनाशनाय दीपम् निर्वपा मिति ….
शुभ-अशुभ सब कर्मो को,ध्यानाग्नि में विध्वंस करुँ ।
शुक्ल ध्यान पाने को गुरु,दशांगी धूप अर्पण करुँ ।।
श्री निर्वेगसागर गुरुवर,तव पूजन से मन हर्षाया ।
आप सम सुख पाने मै,तव चरण शरण हूँ आया ।।
ॐ ह: श्री प पू १०८ निर्वेगसागर मुनिंद्राय मम अष्ट कर्म दहनाय धूपम् निर्वपा मिति ….
शिवफल शाश्वत सुन्दर फल पाने श्रीफल लाया हूँ,
गुरुचरणो में समर्पित करने,तव छत्रछाया में आया हूँ ।
श्री निर्वेगसागर गुरुवर,तव पूजन से मन हर्षाया ।
आप सम सुख पाने मै ,तव चरण शरण हूँ आया ।।
ॐ ह: श्री प पू १०८ निर्वेगसागर मुनिंद्राय मम मोक्षफल प्राप्तेय फलम् निर्वपा मति …
नश्वर पद मद तजकर,आपने शिवपथ को पाया।
ऐसे गुरु चरणों में ,अर्घ्य समर्पित करने मैं आया।
श्री निर्वेगसागर गुरुवर,तव पूजन से मन हर्षाया ।
आप सम सुख पाने मै ,तव चरण शरण हूँ आया ।।
ॐ ह: श्री प पू १०८ निर्वेगसागर मुनिंद्राय मम अनर्घ्य पद प्राप्तेय अर्घ्यम् निर्वपा मिति ….